ओशो - आज मैं आपको साथ ध्यान या Meditation की चौथी विधि (4 techniques Of Meditation) बताने जा रहा हूसभी ध्यान की विधि पढने के लिए यहाँ पर क्लिक करना इस पढने के बाद.
ओशो की सभी ध्यान विधि (Osho All meditation techniques)
कीर्तन अवसर है-अस्तित्व के प्रति अपने आनंद और अहोभाव को निवेदित करने का। उसकी कृपा से जो जीवन मिला, जो आनंद और चैतन्य मिला, उसके लिए अस्तित्व के प्रति हमारे हृदय में जो प्रेम और धन्यवाद का भाव है, उसे हमें कीर्तन में नाचकर, गाकर, उसके नाम-स्मरण की धुन में मस्ती में थिरककर अभिव्यक्त करते हैं।
कीर्तन उत्सव है—भक्ति-भाव से भरे हुए हृदय का। व्यक्ति की भाव-ऊर्जा का समूह की भाव ऊर्जा में विसर्जित होने का अवसर है कीर्तन।
इस प्रयोग में शरीर पर कम और ढीले वस्त्रों का होना तथा पेट का खाली होना बहुत सहयोगी है।
कीर्तन ध्यान एक घंटे का उत्सव है, जिसके पंद्रह-पंद्रह मिनट के चार चरण हैं।
संध्या का समय इसके लिए सर्वोत्तम है।
पहला चरण By Osho
पहले चरण में कीर्तन-मंडली संगीत के साथ एक धुन गाती है—जैसे ‘गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो, राधा रमण हरिं गोपाल बोली।'
इस धुन को पुनः गाते हुए आप नृत्यमग्न हो जाएं। धुन और संगीत में पूरे भाव से डुबें, और अपने शरीर और भावों को बिना किसी सचेतन व्यवस्था के थिरकने तथा नाचने दें। नृत्य और धुन की लयबद्धता में अपनी भाव-ऊर्जा को सघनता और गहराई की ओर विकसित करें।
दूसरा चरण ओशो द्वारा
दूसरे चरण में धुन का गायन बंद हो जाता है, लेकिन संगीत और नृत्य जारी रहता है।
अब संगीत की तरंगों से एकरस होकर नृत्य जारी रखें। भावावेगों एवं आंतरिक प्रेरणाओं को बच्चों की तरह निस्संकोच होकर पूरी तरह से अभिव्यक्त होने दें।
तीसरा चरण (ओशो)
तीसरा चरण पूर्ण मौन और निष्क्रियता का है।
संगीत के बंद होते ही आप अचानक रुक जाएँ। समस्त क्रियाएं बंद कर दें और विश्राम में डूब जाएँ। जाग्रत हुई भाव-ऊर्जा को भीतर ही भीतर काम करने दें।
चौथा चरण (Osho)
चौथा चरण पूरे उत्सव की पूर्णाहुति का है।
पुनः शुरू हो गए मधुर संगीत के साथ आप अपने आनंद, अहोभाव और धन्यवाद के भाव को नाचकर पूरी तरह से अभिव्यक्त करें।
ओशो की अन्य ध्यान विधि -
साभार : ओशो इंटरनेशनल
ओशो की सभी ध्यान विधि (Osho All meditation techniques)
कीर्तन अवसर है-अस्तित्व के प्रति अपने आनंद और अहोभाव को निवेदित करने का। उसकी कृपा से जो जीवन मिला, जो आनंद और चैतन्य मिला, उसके लिए अस्तित्व के प्रति हमारे हृदय में जो प्रेम और धन्यवाद का भाव है, उसे हमें कीर्तन में नाचकर, गाकर, उसके नाम-स्मरण की धुन में मस्ती में थिरककर अभिव्यक्त करते हैं।
कीर्तन उत्सव है—भक्ति-भाव से भरे हुए हृदय का। व्यक्ति की भाव-ऊर्जा का समूह की भाव ऊर्जा में विसर्जित होने का अवसर है कीर्तन।
इस प्रयोग में शरीर पर कम और ढीले वस्त्रों का होना तथा पेट का खाली होना बहुत सहयोगी है।
कीर्तन ध्यान एक घंटे का उत्सव है, जिसके पंद्रह-पंद्रह मिनट के चार चरण हैं।
संध्या का समय इसके लिए सर्वोत्तम है।
पहला चरण By Osho
पहले चरण में कीर्तन-मंडली संगीत के साथ एक धुन गाती है—जैसे ‘गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो, राधा रमण हरिं गोपाल बोली।'
इस धुन को पुनः गाते हुए आप नृत्यमग्न हो जाएं। धुन और संगीत में पूरे भाव से डुबें, और अपने शरीर और भावों को बिना किसी सचेतन व्यवस्था के थिरकने तथा नाचने दें। नृत्य और धुन की लयबद्धता में अपनी भाव-ऊर्जा को सघनता और गहराई की ओर विकसित करें।
दूसरा चरण ओशो द्वारा
दूसरे चरण में धुन का गायन बंद हो जाता है, लेकिन संगीत और नृत्य जारी रहता है।
अब संगीत की तरंगों से एकरस होकर नृत्य जारी रखें। भावावेगों एवं आंतरिक प्रेरणाओं को बच्चों की तरह निस्संकोच होकर पूरी तरह से अभिव्यक्त होने दें।
तीसरा चरण (ओशो)
तीसरा चरण पूर्ण मौन और निष्क्रियता का है।
संगीत के बंद होते ही आप अचानक रुक जाएँ। समस्त क्रियाएं बंद कर दें और विश्राम में डूब जाएँ। जाग्रत हुई भाव-ऊर्जा को भीतर ही भीतर काम करने दें।
चौथा चरण (Osho)
चौथा चरण पूरे उत्सव की पूर्णाहुति का है।
पुनः शुरू हो गए मधुर संगीत के साथ आप अपने आनंद, अहोभाव और धन्यवाद के भाव को नाचकर पूरी तरह से अभिव्यक्त करें।
ओशो की अन्य ध्यान विधि -
साभार : ओशो इंटरनेशनल