हमारे शरीर और मन में इकट्टे हो गए दमित आवेगों, तनावों एवं रुग्णताओं का रेचन करने, अर्थात उन्हें बाहर निकाल फेंकने के लिए ओशो ने इस नई Meditation विधि का सृजन किया है। शरीर और मन के इस रेचन अर्थात शुद्धिकरण से, साधक पुनः अपनी देह-ऊर्जा, प्राण-ऊर्जा, एवं आत्म-ऊर्जा के संपर्क में-उनकी पूर्ण संभावनाओं के संपर्क में आ जाता है—और इस तरह साधक आध्यात्मिक जागरण की ओर सरलता से विकसित हो पाता है।
सक्रिय ध्यान अकेले भी किया जा सकता है और समूह में भी। लेकिन समूह में करना ही अधिक परिणामकारी है।
स्नान कर के, खाली पेट, कम से कम वस्त्रों में, आंखों पर पट्टी बांधकर इसे करना चाहिए।
यह विधि पूरी तरह प्रभावकारी हो सके, इसके लिए साधक को अपनी पूरी शक्ति से, समग्रता में इसका अभ्यास करना होगा। इसमें पांच चरण हैं। पहले तीन चरण दस-दस मिनट के हैं तथा बाकी दो पंद्रह-पंद्रह मिनट के।
सुबह का समय इसके लिए सर्वाधिक उपयोगी है, युं इसे सांझ के समय भी किया जा सकता है।
पहला चरण By Osho
अपनी पूरी शक्ति से तेज और गहरी श्वास लेना शुरू करें। श्वास बिना किसी नियम के, अराजकतापूर्वक-भीतर लें, बाहर छोड़ें। श्वास नाक से लें। श्वास बाहर फेंकने पर अधिक जोर लगाएं, इससे श्वास का भीतर आना सहज हो। जाएगा। श्वास का लेना और छोड़ना खूब तीव्रता से और जल्दी-जल्दी करें—और अपनी पूरी ताकत इसमें लगा दें। इसे बढ़ाते ही चले जाएं-आपका पूरा व्यक्तित्व एक तेज श्वास-प्रश्वास ही बन जाए। भीतर ध्यानपूर्वक देखते रहें-श्वास आयी, श्वास गयी।
दूसरा चरण (ओशो)
अब पूरी तरह शरीर को गति करने दें तथा आंतरिक भावावेगों को प्रकट होने दें। भीतर से जो कुछ बाहर निकलता हो, उसे बाहर निकलने में सहयोग करें। पूरी तरह से पागल हो जाएं—रोएं, चीखें, चिल्लाएं, नाचे, उछलें, कृदें, हंसें—जो भी होता हो उसे सहयोग करें, उसे तीव्रता दें। चाहें तो तेज और गहरी सांस लेना जारी रख सकते हैं। यदि शरीर की गति और भावों का रेचन और प्रकटीकरण न होता हो, तो चीखना, चिल्लाना, रोना, हंसना इत्यादि में से किसी एक को चुन लें और उसे करना शुरू करें। शीघ्र ही आपके स्वयं के भीतर के संगृहीत और दमित आवेगों का झरना फूट पड़ेगा।
खयाल रखें कि आपका मन और आपकी बुद्धि इस प्रक्रिया में बाधक न बने। यदि फिर भी कुछ न होता हो, तो श्वास की चोट जारी रखें और किसी आंतरिक अभिव्यक्ति को प्रकट होने में सहयोग करें।
तीसरा चरण (Third step of Dhyan ओशो)
अब दोनों बाजू ऊपर उठा लें, पंजों पर खड़े हो जाएं, और एक ही जगह पर उछलते हुए, समग्रता से, पूरी ताकत से महामंत्र हू-हू-हू...का उच्चार करें, और उसकी चोट को काम केंद्र पर पड़ने दें। ऊर्जा के बढ़ते हुए प्रवाह को अनुभव करें। 'हू की चोट को और अधिक तीव्र करते चले जाएं-तथा आनंदपूर्वक इस चरण को शिखर-तीव्रता की ओर ले चलें।
चौथा चरण (Four Step of Meditation Osho)
अचानक सारी गतियां, क्रियाएं और हू-हृ-हू...की आवाज आदि सब बंद कर दें और शरीर जिस स्थिति में हो, उसे वहीं थिर कर लें। शरीर को किसी भी प्रकार से व्यवस्थित न करें। पूरी तरह से निष्क्रिय और सजग बने रहें। एक गहरी शांति, मौन और शून्यता भीतर घटित होगी।
पाचवा चरण ( Step Five - Osho)
अब भीतर छा गए आनंद, मौन और शांति को अभिव्यक्त करें। आनंद और अहोभाव से भरकर नाचे, गाएं और उत्सव मनाएं। शरीर के रोएं-रोएं से भीतर की जीवन-ऊर्जा और चैतन्य को प्रकट होने दें।
ध्यान रहे, यदि आप ऐसी जगह ध्यान कर रहे हो, जहां पहले तथा दूसरे चरण में भावावेगों के प्रकटीकरण तथा तीसरे चरण में हू-हू-हू...की आवाज करने की सुविधा न हो, तो दूसरे चरण में रेचन-क्रिया शारीरिक मुद्राओं द्वारा ही होने दें—तथा तीसरे चरण में ‘हू की आवाज बाहर न करके भीतर ही भीतर करें। लेकिन आवाज करना अधिक श्रेयस्कर है, क्योंकि तब ध्यान अधिक गहरा हो जाता है।
ऐसी ही ओशो osho की और अधिक ध्यान की विधि पढ़ें -
सक्रिय ध्यान अकेले भी किया जा सकता है और समूह में भी। लेकिन समूह में करना ही अधिक परिणामकारी है।
स्नान कर के, खाली पेट, कम से कम वस्त्रों में, आंखों पर पट्टी बांधकर इसे करना चाहिए।
यह विधि पूरी तरह प्रभावकारी हो सके, इसके लिए साधक को अपनी पूरी शक्ति से, समग्रता में इसका अभ्यास करना होगा। इसमें पांच चरण हैं। पहले तीन चरण दस-दस मिनट के हैं तथा बाकी दो पंद्रह-पंद्रह मिनट के।
सुबह का समय इसके लिए सर्वाधिक उपयोगी है, युं इसे सांझ के समय भी किया जा सकता है।
पहला चरण By Osho
अपनी पूरी शक्ति से तेज और गहरी श्वास लेना शुरू करें। श्वास बिना किसी नियम के, अराजकतापूर्वक-भीतर लें, बाहर छोड़ें। श्वास नाक से लें। श्वास बाहर फेंकने पर अधिक जोर लगाएं, इससे श्वास का भीतर आना सहज हो। जाएगा। श्वास का लेना और छोड़ना खूब तीव्रता से और जल्दी-जल्दी करें—और अपनी पूरी ताकत इसमें लगा दें। इसे बढ़ाते ही चले जाएं-आपका पूरा व्यक्तित्व एक तेज श्वास-प्रश्वास ही बन जाए। भीतर ध्यानपूर्वक देखते रहें-श्वास आयी, श्वास गयी।
दूसरा चरण (ओशो)
अब पूरी तरह शरीर को गति करने दें तथा आंतरिक भावावेगों को प्रकट होने दें। भीतर से जो कुछ बाहर निकलता हो, उसे बाहर निकलने में सहयोग करें। पूरी तरह से पागल हो जाएं—रोएं, चीखें, चिल्लाएं, नाचे, उछलें, कृदें, हंसें—जो भी होता हो उसे सहयोग करें, उसे तीव्रता दें। चाहें तो तेज और गहरी सांस लेना जारी रख सकते हैं। यदि शरीर की गति और भावों का रेचन और प्रकटीकरण न होता हो, तो चीखना, चिल्लाना, रोना, हंसना इत्यादि में से किसी एक को चुन लें और उसे करना शुरू करें। शीघ्र ही आपके स्वयं के भीतर के संगृहीत और दमित आवेगों का झरना फूट पड़ेगा।
खयाल रखें कि आपका मन और आपकी बुद्धि इस प्रक्रिया में बाधक न बने। यदि फिर भी कुछ न होता हो, तो श्वास की चोट जारी रखें और किसी आंतरिक अभिव्यक्ति को प्रकट होने में सहयोग करें।
तीसरा चरण (Third step of Dhyan ओशो)
अब दोनों बाजू ऊपर उठा लें, पंजों पर खड़े हो जाएं, और एक ही जगह पर उछलते हुए, समग्रता से, पूरी ताकत से महामंत्र हू-हू-हू...का उच्चार करें, और उसकी चोट को काम केंद्र पर पड़ने दें। ऊर्जा के बढ़ते हुए प्रवाह को अनुभव करें। 'हू की चोट को और अधिक तीव्र करते चले जाएं-तथा आनंदपूर्वक इस चरण को शिखर-तीव्रता की ओर ले चलें।
चौथा चरण (Four Step of Meditation Osho)
अचानक सारी गतियां, क्रियाएं और हू-हृ-हू...की आवाज आदि सब बंद कर दें और शरीर जिस स्थिति में हो, उसे वहीं थिर कर लें। शरीर को किसी भी प्रकार से व्यवस्थित न करें। पूरी तरह से निष्क्रिय और सजग बने रहें। एक गहरी शांति, मौन और शून्यता भीतर घटित होगी।
पाचवा चरण ( Step Five - Osho)
अब भीतर छा गए आनंद, मौन और शांति को अभिव्यक्त करें। आनंद और अहोभाव से भरकर नाचे, गाएं और उत्सव मनाएं। शरीर के रोएं-रोएं से भीतर की जीवन-ऊर्जा और चैतन्य को प्रकट होने दें।
ध्यान रहे, यदि आप ऐसी जगह ध्यान कर रहे हो, जहां पहले तथा दूसरे चरण में भावावेगों के प्रकटीकरण तथा तीसरे चरण में हू-हू-हू...की आवाज करने की सुविधा न हो, तो दूसरे चरण में रेचन-क्रिया शारीरिक मुद्राओं द्वारा ही होने दें—तथा तीसरे चरण में ‘हू की आवाज बाहर न करके भीतर ही भीतर करें। लेकिन आवाज करना अधिक श्रेयस्कर है, क्योंकि तब ध्यान अधिक गहरा हो जाता है।
ऐसी ही ओशो osho की और अधिक ध्यान की विधि पढ़ें -