अच्छे बने रहें एक बार स्वामी दयानंद सरस्वती गंगा के किनारे रुके हुए थे। वहीं पास में एक साधु भी रुका था, जो स्वभाव से गुस्सैल था।एक दिन वह स्वामी दयानंद से नाराज हो गया। अब वह रोज उनकी कुकटिया के बाहर जाता और उनके बारे में अपशब्द बोलता।
स्वामी दयानंद इस पर बिल्कुल नाराज नहींहोते थे और न ही अपनी कोई प्रतिक्रिया ही देते थे। उनके शिष्य जब साधु को सबकसिखाने की बात कहते तो स्वामीजी उन्हें रोकते हुए कहते थे- उन्हें अपनी गलती का अहसास अपने आप हो जाएगा। हमें अपने अच्छे व्यवहार के मार्ग से विचलित नहीं होना। एक बार स्वामीजी के पास फलों से भरा टोकरा आया तो उन्होंने उसमें से कुकछअच्छे फल साधु के पास भिजवा दिए।
साधु ने नाराज होते हुए फल लेकर आए शिष्य सेकहा- ये फल उसने मेरे लिए नहीं भेजे होंगे।मैं तो रोज उसे गालियां देता हूं। ये फल किसीऔर के लिए होंगे। जाओ यहां से, मुझ से मजाक मत करो। तब शिष्य स्वामी जी के पास पहुंचा। इसके बाद वह स्वामी दयानंद का संदेश लेकर साधु के पास वापस आया औरबोला- स्वामीजी ने कहा है कि आप उन्हें अपशब्द कहने में अपनी बहुमूल्य ऊर्जा खर्चकरते हैं। उस ऊर्जा की भरपाई के लिए हीये फल स्वामीजी ने भिजवाए हैं। स्वामीदयानंद की यह बात सुनकर साधु अपने किएपर लज्जित हो गया था।
स्वामी दयानंद इस पर बिल्कुल नाराज नहींहोते थे और न ही अपनी कोई प्रतिक्रिया ही देते थे। उनके शिष्य जब साधु को सबकसिखाने की बात कहते तो स्वामीजी उन्हें रोकते हुए कहते थे- उन्हें अपनी गलती का अहसास अपने आप हो जाएगा। हमें अपने अच्छे व्यवहार के मार्ग से विचलित नहीं होना। एक बार स्वामीजी के पास फलों से भरा टोकरा आया तो उन्होंने उसमें से कुकछअच्छे फल साधु के पास भिजवा दिए।
साधु ने नाराज होते हुए फल लेकर आए शिष्य सेकहा- ये फल उसने मेरे लिए नहीं भेजे होंगे।मैं तो रोज उसे गालियां देता हूं। ये फल किसीऔर के लिए होंगे। जाओ यहां से, मुझ से मजाक मत करो। तब शिष्य स्वामी जी के पास पहुंचा। इसके बाद वह स्वामी दयानंद का संदेश लेकर साधु के पास वापस आया औरबोला- स्वामीजी ने कहा है कि आप उन्हें अपशब्द कहने में अपनी बहुमूल्य ऊर्जा खर्चकरते हैं। उस ऊर्जा की भरपाई के लिए हीये फल स्वामीजी ने भिजवाए हैं। स्वामीदयानंद की यह बात सुनकर साधु अपने किएपर लज्जित हो गया था।
दोस्तों हमे इस hindi kahani से सिख मिलती है कि हमें किसी के बुरे व्यवहार पर अपनीअच्छाई न छोड़ दें।